बुधवार, 26 जुलाई 2017

चित्रकोट के दीदार से मन हुआ शांत


मैं, पत्नी और बच्चे सुबह 4 बजे उठ गए थे. साढ़े 5 बजे तक तैयार होकर धमतरी बस स्टैंड की और निकल पड़े. थोड़ा इन्तजार करने के बाद सुबह 6 बजे बस जगदलपुर के लिए रवाना हुई. दरअसल हम बेटी का बर्थ-डे मनाने चित्रकोट जा रहे थे. हम 20 जुलाई 2017 को नौवा बर्थ-डे मनाने 4 सदस्यीय परिवार निकले थे. स्लीपर बर्थ का मज़ा लेते हुए हम आगे बढ़ रहे थे. 5 घंटे के सफ़र में चारामा, कांकेर, केशकाल, कोंडागांव, बस्तर के दर्शन हुए.

छाये बादलों को निहारते हुए हम आगे बढ़ते गये. बस स्टैंड में आसपास के दुकानदारों से पूछने पर पता चला कि 38 किलोमीटर दूर स्थित चित्रकोट पहुँचने के लिए ऑटो से अनुपमा टाकीज़ के बाहर चले जाइये. वहाँ पर आपको चित्रकोट जाने वाली बस मिल जाएगी.
दोपहर 12 बजे हम टाकीज के बाहर पहुँच गये, जहाँ पहले से कुछ प्राइवेट टैक्सी और ऑटो सवारियों को भर रहे थे. पूछने पर पता चला की कोई भी वाहन चित्रकोट नहीं जा रही है. हम वहां पर बैठ गये. करीबन पौन घंटे इंतजार करने के बाद एक बस आई. यह वही बस थी, जिसे चित्रकोट जाना था. हम उसमे बैठ गये. दोपहर 1 बजे बस रवाना हुई. बस वाले ने पहले ही बता दिया था कि टिकिट किराया 40 रुपये है. उस समय उस इलाके में बाढ़ आई थी, इसलिए उसने कहा कि हम बस को दूसरे रास्ते से ले जायेंगे, जिसके लिए 10 रूपये अलग से चार्ज लगेगा. हम 50 रूपये प्रति सवारी देने तैयार हो गये.

चलती बस से हरे-भरे पेड़-पौधे और खेतों में भरे बाढ़ के पानी को हम देख रहे थे. करीबन 2 घंटे बाद यानि ढाई बजे हम चित्रकोट पहुँच गये. दूर से पानी की आवाज मन मोह रही थी. नाके में ड्राइवर ने बस रोक दी और किनारे लगा दी. उसने कहा कि 2 घंटे रुकने के बाद बस जाएगी, इसलिए आप लोग 2 घंटे झरने का मज़ा लेकर आ जाना.
जब हम नाके के अन्दर गये, तो दूर से झरने का पानी नज़र आने लगा. यह पानी एक बड़े से शिवलिंग के पीछे था. हम इतने उत्सुक थे कि तेज क़दमों से चल रहे थे. जब हम वहां पहुंचे, तो नाममात्र के लोग थे. जैसे-जैसे समय बीता, लोगों का जमावड़ा बढ़ने लगा. झरने का पानी इतना तेज था कि अंगद के भी पैर उखड़ जाते. तेज बहाव के बावजूद लोग पानी के बहाव किनारे सेल्फी ले रहे थे. कुछ युगल जोड़े भी नज़र आये और कुछ फैमिली के साथ आनंद लेते दिखे. मैंने पत्नी और बच्चों की फोटो खींची और अपने फैमिली की फोटो एक व्यक्ति से खिंचवाई.

पानी एक तरह से मंदिर को घेरे हुए था. हमारे बच्चे पानी के किनारे मुंह धोते हुए पानी का आनंद ले रहे थे. सेल्फी लेने में मग्न कई लोगों को यह अंदाजा नहीं था कि वे कितने पास जाकर सेल्फी ले रहे हैं या फोटो खिंचवा रहे हैं. पानी का बहाव बहुत तेज था. पानी मटमैला था. पानी धरातल में इतना भर चुका था कि नीचे उतरने की जगह नहीं थी. वैसे भी बाढ़ की स्थिति से सभी अवगत थे.
बहरहाल, जब हमने घड़ी देखी, तो पता चला कि पौने 4 बज चुके हैं. हमें भूख लग रही थी. हमने आसपास पता किया. मालूम चला कि आसपास इक्के-दुक्के होटल हैं, जहाँ पर सिर्फ चाय मिलती है, खाना नहीं. एक जगह लोगों का जमावड़ा देखकर मैंने होटल मालकिन से भोजन के बारे में भी पूछा, लेकिन खाना बनाने में वक्त लगेगा, कहकर उसने टाल दिया. हम उस दिन भूखे रहे, लेकिन घर से केला, मिक्सचर आदि सामान लेकर गये थे, उसी से काम चलाया. जब हम गेट के पास पहुंचे, तो देखा कि बस बहुत पहले जा चुकी थी.

मैंने गेट पर वापस जगदलपुर जाने के लिए वाहन के बारे में कुछ लोगों से पूछा, तो उन्होंने बताया कि यहाँ से 8 किमी दूर एक गाँव है, वहां से आपको बस मिल जायेगी. हम फिर एंज्वाय करने के लिए झरने की तरफ चले गये. पत्नी के बार-बार आग्रह करने पर हम सभी वापस जाने के लिए वहां से पैदल निकल ही रहे थे कि अचानक एक जीप हमारे पास आकर रुकी और पूछा कि कहाँ जाओगे. हमने कहा जगदलपुर. 100 रूपये में बातचीत हो गई. हम बैठ गये.

जगदलपुर पहुँचने के बाद जैसे ही हम जीप से उतरे, ड्राइवर जयादा पैसे मांगने लगा. 100 रुपये किराया देने के बाद 10 रूपये अलग से देकर जैसे-तैसे हमने उससे पीछा छुड़ाया और तुरंत ऑटो में बैठकर जगदलपुर बस स्टैंड के लिए रवाना हो गये.
शाम को बस स्टैंड में जब मैंने कुछ लोगों से बात की, तो मुझे अहसास हुआ कि यहाँ के लोग मिलनसार और सहयोगी हैं. बस स्टैंड के बाहर उतरने के बाद हमने बर्थ-डे केक के बारे में पता किया, तो मालूम हुआ कि बस स्टैंड और उसके बाहर केक नहीं मिलता. हम निराश हो गये. एक-दो लोगों से पूछने पर पता चला कि कपूर बेकरी जो 3 किमी पहले पड़ता है, वहां बर्थ-डे केक जरूर मिल जायेगा. सो, मैं, पत्नी और बेटी को एक होटल में बिठाकर बालक के साथ कपूर बेकरी के लिए निकल पड़ा.

लिफ्ट के माध्यम से मैं वहां पहुँच गया. केक खरीदने के बाद मैं होटल पहुंचा, तो पत्नी और बेटी खाना खा रहे थे. पत्नी ने बताया कि यहाँ खाना सही नहीं है. सब्जी से बदबू आ रही है. मैंने होटल मालिक को 60 रूपये दिए, जो एक थाली का रेट था और बाजू वाले होटल में चला गया. यहाँ पर 70 रूपये में भरपेट भोजन था. हम सभी ने मजे से खाना खाया और बेटी से बर्थ-डे केक भी कटवाया.
इस तरह खट्टी-मीठी यादें लेकर हम करीबन रात 9 बजे गंतव्य की ओर रवाना हो गये.

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